लक्ष्मी नारायण मंदिर तिलवाड़ा में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा संपंन,
बड़ी संख्या में पहुंचे भक्तों ने भंडारा किया ग्रहण,
आचार्य देवेश सेमवाल ने भंडारे के प्रसाद का भी किया वर्णन,
रुद्रप्रयाग। लक्ष्मी नारायण मंदिर तिलवाड़ा में आयोजित सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा का भंडारे के साथ समापन हुआ। भागवत कथा के समापन अवसर पर हवन यज्ञ किया गया, जिसमें लोगों ने पूर्णाहुति दी। इस दौरान क्षेत्र की खुशहाली की कामना को लेकर बड़ी संख्या में भक्त पहुंचे हुए थे।
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केदारनाथ राजमार्ग से सटे तिलवाड़ा बाजार स्थित लक्ष्मी नारायण मंदिर में स्थानीय भक्तों की ओर से आयोजित सात दिवसीय श्रीमद भागवत कथा का भंडारे के साथ समापन हुआ। कथा समापन पर भारी संख्या में श्रद्धालुओं ने पहले हवन यज्ञ में आहुति डाली और फिर प्रसाद ग्रहण कर पुण्य कमाया। समापन अवसर पर कथावाचक आचार्य देवेश चन्द्र सेमवाल ने भक्तों को भक्ति मार्ग से जुड़ने और सत्कर्म करने को कहा।
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कहा कि हवन-यज्ञ से वातावरण एवं वायुमंडल शुद्ध होने के साथ-साथ व्यक्ति को आत्मिक बल मिलता है। व्यक्ति में धार्मिक आस्था जागृत होती है। दुर्गुणों की बजाय सद्गुणों के द्वार खुलते हैं। यज्ञ से देवता प्रसन्न होकर मनवांछित फल प्रदान करते हैं। उन्होंने बताया कि भागवत कथा के श्रवण से व्यक्ति भव सागर से पार हो जाता है। श्रीमद भागवत से जीव में भक्ति, ज्ञान एवं वैराग्य के भाव उत्पन्न होते हैं। इसके श्रवण मात्र से व्यक्ति के पाप पुण्य में बदल जाते हैं। विचारों में बदलाव होने पर व्यक्ति के आचरण में भी स्वयं बदलाव हो जाता है।
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कथावाचक ने भंडारे के प्रसाद का भी वर्णन किया। उन्होंने कहा कि प्रसाद तीन अक्षर से मिलकर बना है। पहला प्र का अर्थ प्रभु, दूसरा सा का अर्थ साक्षात व तीसरा द का अर्थ होता है दर्शन। जिसे हम सब प्रसाद कहते हैं। हर कथा या अनुष्ठान का तत्वसार होता है, जो मन बुद्धि व चित को निर्मल कर देता है। मनुष्य शरीर भी भगवान का दिया हुआ सर्वश्रेष्ठ प्रसाद है। जीवन में प्रसाद का अपमान करने से भगवान का ही अपमान होता है। भगवान को लगाए गए भोग का बचा हुआ शेष भाग मनुष्यों के लिए प्रसाद बन जाता है। इस मौके पर चन्द्र सिंह जगवाण, जीतराम डिमरी, विक्रम सिंह कंडारी, शाकाम्बरी देवी, गीता सेमवाल, राकेश सेमवाल, विशन सिंह जगवाण, भरत सिंह जगवाण, हयात सिंह जगवाण, ललित मोहन रावत, अंशुल जगवाण सहित पांजूला क्षेत्र से बड़ी संख्या में भक्त एवं व्यापारी तथा स्थानीय जनता मौजूद थे।
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