सरकार को आईना दिखा रही पुस्कालय गांव की महिलाएं
उत्तराखण्ड राज्य के मणिगुह की महिलाओं ने बनाया राखी का त्यौहार खास
चीड़ की पत्तियों से बना रही राखियां, सरकार और शासन-प्रशासन को दिखा रही आईना
हरीश गुसाईं
अगस्त्यमुनि। उत्तराखण्ड के पहले पुस्तकालय गांव मणिगुह की महिलाओं के लिए इस बार राखी का त्यौहार खास बन गया है। हो भी क्यों ना, राखी के इस त्यौहार से उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की दिशा में पहला कदम सफलता के साथ आगे बढ़ाया है। गांव की महिलाओं ने चीड़़ की पत्तियों से सुन्दर राखियों का निर्माण किया है, जिसे हमारा गांव घर फाउंडेशन के सहयोग से भारत के कई शहरों में बेचा जा रहा है। अपने पहले ही प्रयास में महिलाओं ने 12 हजार से अधिक की राखियां बेची हैं। यह धनराशि शहर के हिसाब से भले ही बहुत कम लग रही हो, मगर उत्तराखण्ड के दूरस्थ गांव जहां मूलभूत सुविधाओं का अकाल हो, वहां की महिलाओं की ओर से किए गए आत्मनिर्भर बनने की दिशा में पहले प्रयास के हिसाब से बहुत बड़ी उपलब्धि है, जिस पर सरकार और शासन-प्रशासन को अमल करने की जरूरत है।

पहाड़ों मे इस बार रक्षाबंधन को लेकर महिलाएं खास तैयारी कर रही हैं। महिलाएं रांखिया चीड़ की पत्तियों (पीरूल) और स्थानीय उत्पादों से बना रही है। सात महीने पहले जब पुस्तकालय गांव मणिगुह का उद्घाटन हुआ था, तब किस ने यह सोचा ना था कि पुस्तकालय गांव की महिलाएं छः महीने बाद इतनी सुन्दर राखियां बना रही होंगी। राखियां भी उन चीड़ के पत्तों से जिन्हें उत्तराखण्ड में अभिशाप माना जाता है। इन महिलाओं ने अपने हुनर से अभिशाप को वरदान में बदल दिया है। यहां बताते चलें कि हमारा गांव घर फाउंडेशन द्वारा 26 जनवरी को रुद्रप्रयाग जनपद के दूरस्थ गांव मणिगुह में पहला सुसज्जित पुस्तकालय खोला था। इसके साथ ही गांव में जगह-जगह पुस्तक मंदिरांे की स्थापना कर शिक्षा की अलख जगाई थी। फाउंडेशन का उद्देश्य गांव को पुस्तकालय के माध्यम से पर्यटन एवं ट्रैकिंग का हब बनाकर इसे रोजगार से जोड़ना था। जिसमें वह काफी हद तक सफल हुए हैं। इसके साथ ही फाउंडेशन ने गांव की महिलाओं को भी रोजगार से जोड़ने के लिए कई प्रोग्राम बनाये। जिनमें स्थानीय उत्पादों को बढ़ावा देते हुए उन्हें बाजार उपलब्ध कराने पर जोर दिया गया। इसके लिए जून माह में फाउंडेशन ने एक पिरूल हस्तशिल्प प्रशिक्षण कार्यशाला का आयोजन किया था, जिसमें प्रख्यात पिरूल हस्तशिल्पकार मंजू आर साह ने महिलाओं को पिरूल के उत्पाद बनाने का प्रशिक्षण दिया था। इसके बाद रक्षा बंधन त्यौहार को देखते हुए महिलाओं ने सबसे पहले राखी बनाने पर जोर दिया और देखते ही देखते इसमें पारंगत होकर ऐसी सुंदर राखियां बना दी कि देश के कोने-कोने से उनको राखियों के ऑर्डर मिलने लगे, लेकिन समय कम होने पर वे अधिक राखियां नहीं बना पाई। फिर भी भविष्य के लिए आशा का संचार तो कर ही गई। हमारा गांव घर फाउंडेशन के संस्थापक सुमन मिश्रा ने बताया कि इस कार्य को गांव की करीब आठ महिलाओं ने अपनाया। जिनमंे पांच महिलाओं का काम सर्वोत्तम रहा।

हमारी करीब बारह हजार की राखियां इस बार बिकी, क्योंकि समय बहुत कम था और एक महीने पहले ही महिलाओं ने प्रशिक्षण लिया था। ये राखियां देखने में सुन्दर तो हैं ही, साथ ही प्रकृति के साथ जुड़े रहने का अहसास भी कराती हैं। देश भर के विभिन्न राज्यों बिहार, गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तराखण्ड, हरियाणा, मध्यप्रदेश और पंजाब आदि में उत्तराखंड की पिरुल से निर्मित ये राखियां सब को पसंद आई हैं। इस छोटे से प्रयास से गांव की महिलाओं का आत्मविश्वास तो बढ़ा ही है। साथ ही साथ उन में कुछ रचनात्मक करने की ऊर्जा का भी संचार हुआ है। हमारी योजना है कि बहुत जल्द यहां के स्थानीय उत्पाद भी शहरों तक पहुंचाएं जाएं, ताकि शिक्षा के साथ साथ क्षेत्र की आर्थिकी में भी सुधार हो।









