रोटने और झंगोरे की खीर ने जीत लिया सभी का दिल
लोक संस्कृति दिवस पर राइंका मणिपुर में लगाई गई प्रदर्शनी
रुद्रप्रयाग। राइंका मणिपुर में मनाया गया लोक संस्कृति दिवस कई मायनों में अविस्मरणीय रहा, जिसमें सबसे अधिक आकर्षण रहा। लोक परम्पराओं पर आधारित वस्तुओं की प्रदर्शनी। पहाड़ के जनजीवन में प्रयोग होने वाली विभिन्न वस्तुओं की यह प्रदर्शनी राइंका मणिपुर में बच्चों और शिक्षकों ने मिलकर लोक संस्कृति दिवस के अवसर पर लगायी गई। ढोल, दमौ, मसक, बीणा, रणसिंगा, हुड़का जैसे लोकवाद्य हो या तौर, गहथ, सौंटा, भंगजीरा, जख्या, राडू जैसे लोक की फसले या गिलोय, कंटकारी, कड़वै, कण्डाली जैसी लोक औषधियां हो या भड्डू, सिलबट्टा, परया, जंदरा और घौड़ी, तमली, बंठा, गागर, सौरी, सुप्पी जैसे लोक के बर्तन।

लोक संस्कृति के सही मायने यहां शिक्षकों ने अपने विद्यार्थियों को बखूबी समझाये और सिखाये हैं। शिक्षिका ललिता रौतेला एवं शिक्षक विनय करासी ने जहां इस प्रदर्शनी को निर्देशित किया, वहीं इस प्रदर्शनी में विद्यालय के प्रधानाचार्य महावीर सिंह रावत ने भी घौड़ी, फूलकण्डी जैसी कई पुरानी पारंपरिक वस्तुएं देकर बच्चों का उत्साहवर्धन किया। प्रदर्शनी में जितनी विविधता से वस्तुओं का संग्रह किया गया था, वह गहरी रचनात्मकता है तो वहीं बच्चों द्वारा अतिथियों के स्वागत में बनायी गयी रोटने और दाल की पकोड़ियों के साथ झंगोरे की खीर ने भी सभी का दिल जीत लिया। इन सभी पकवानों को तिमले के पत्तों से बनी पुड़खियों यकटोरियों में दिया गया था जो लोक संस्कृति को बचाने का एक प्रयास भी रहा। यहां सभी अतिथियों के स्वागत अगवानी कलश कन्याओं द्वारा यशवर्धनी कलशों को सिर में रखकर किया गया, वहीं समस्त अतिथियों को लगाये जाने वाला तिलक भी परंपरागत ‘नौघरया’ से लगाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि केदारनाथ विधायक मनोज रावत ने भी परम्पराओं को सम्मान देते हुए अगवानी कलश कन्याओं को भेंट देकर उनका आतिथ्य स्वीकारा। उन्होंने सीखने-सिखाने और प्रदर्शनी को रोचक बनाने में शिक्षकों द्वारा किये गये नवाचारी प्रयोगों द्वारा परंपराओं को नयी पीढ़ी तक सौपने के प्रयास की सराहना की है।
