संस्कृत महाविद्यालय में 20 छात्रों को धारण कराया गया जनेऊ
रुद्रनाथ मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चार के साथ यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन
रुद्रप्रयाग। 108 स्वामी सच्चिदानंद वेद भवन संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग में श्रावणी उपाकर्म यज्ञोपवीत संस्कार का आयोजन किया गया, जिसमें विद्यालय के 20 छात्रों को जनेऊ धारण कराया गया। साथ ही यज्ञोपवीत को धारण करने के नियम के बारे भी विस्तार से जानकारी दी गई।

बुधवार को संस्कृत महाविद्यालय रुद्रप्रयाग के शिक्षकों ने छात्रों को अलकनंदा-मंदाकिनी नदी के तट पर बीस छात्रों का मुंडन कर गंगा स्नान कराया। इसके बाद रुद्रनाथ मंदिर में पहुंचकर वैदिक मंत्रोच्चारण के साथ यज्ञोपवीत की विशेष पूजा अर्चना एवं हवन किया गया, जिसके बाद विद्यालय के छात्रों को यज्ञोपवीत कराकर इसके नियमों की जानकारी भी दी। महाविद्यालय के प्रधानाचार्य शशि भूषण बमोला ने कहा श्रावणी पर्व का हमारे शास्त्रों में विशेष महत्व है। वेद विद्या का प्रारंभ इसी पर्व से होता है। यह पर्व परंपरागत रूप से विद्यालय में प्रतिवर्ष आयोजित किया जाता है।

साहित्याचार्य सुखदेव सिलोड़ी ने कहा कि श्रावण पूर्णिमा के दिन सनातन धर्मावलंबी श्रावणी उपाक्रम एवं नूतन यज्ञोपवीत को भी धारण करता है। व्याकरणाचार्य जयप्रकाश गौड़ ने कहा कि यज्ञोपवीत का पूजन करके अपने यजमानों को यज्ञोंपवीत एवं रक्षा सूत्र बांधते हैं। इस प्रकार वैदिक परंपरा में वैदिक शिक्षा साढ़े पांच या साढ़े छह मास तक चलती है। वर्तमान में श्रावणी पूर्णिमा के दिन ही उपाकर्म और उत्सर्ग दोनों विधान कर दिए जाते हैं। प्रतीक रूप में किया जाने वाला यह विधान हमें स्वाध्याय और सुसंस्कारों के विकास के लिए प्रेरित करता है। यह जीवन शोधन की एक अति महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। श्रावणी पर्व वैदिक काल से शरीर, मन और इन्द्रियों की पवित्रता का पुण्य पर्व माना जाता है। इस पर्व पर की जाने वाली सभी क्रियाओं का यह मूल भाव है कि बीते समय में मनुष्य से हुए ज्ञात-अज्ञात बुरे कर्म का प्रायश्चित करना और भविष्य में अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देना। वेद आचार्य प्रवीण सती ने कहा कि यह पर्व गुरु-शिष्य परंपरा का महत्वपूर्ण पर्व है। आचार्य देवी प्रसाद नौटियाल ने कहा कि वैदिक पर्वो का हमारे जीवन में महत्वपूर्ण स्थान है। इस अवसर पर कुलदीप डिमरी, सुमित, अंकुश, ऋषभ, मोहित, आयुष, आदित्य, विकास व प्रियांशु आदि उपस्थित थे।


