उत्तराखंड में मिट्टी संरक्षण के लिए धरातल पर काम करने की जरूरत: देवराघवेन्द्र
गुवाहाटी में आयोजित कार्यशाला में मृदा संरक्षण पर जोर,
जनपद से युवा पर्यावरण विशेषज्ञ देवराघवेन्द्र ने लिया भाग,
नीति आयोग और भारत सरकार को सौंपी जाएगी कार्यशाला की रिपोर्ट
रुद्रप्रयाग। पूरे विश्व में मृदा संरक्षण पर संकट आ चुका है और हमारी मृदा प्रदूषित हो चुकी है। इस चिंता को देखते हुए गुवाहाटी में इंडो-जर्मन फेडरल के तहत मेरी माटी, मेरा देश समृद्धि विषय पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें जल, जंगल, जमीन और मिट्टी के संरक्षण पर चर्चा की गई। कार्यशाला में हिमालयी राज्यों में पर्यावरण संरक्षण के लिए धरातल पर ठोस प्रयास करने पर जोर दिया गया। कार्यशाला की रिपोर्ट आगामी पांच दिसंबर को नई दिल्ली में नीति आयोग और भारत सरकार को सौंपी जाएगी।
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कार्यशाला में उत्तराखंड राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों से 12 लोग शामिल हुए, जिसमें पदमश्री प्रेम चंद्र शर्मा, विजय जड़धारी, दिनेश रतूड़ी के अलावा रुद्रप्रयाग जनपद से युवा पर्यावरण विशेषज्ञ देव राघवेंद्र बद्री बतौर परामर्शदाता के रूप में मौजूद रहे। कार्यशाला में देवराघवेन्द्र बद्री ने जल, जंगल, जमीन के संरक्षण के साथ मृदा संरक्षण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि आधुनिक दौर में जहां भौतिक विकास को बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे प्रतिवर्ष टनों मिट्टी बर्बाद हो रही है। साथ ही बेमौसम बारिश, भूस्खलन व भूधंसाव से भी मिट्टी का तेजी से क्षरण हो रहा है। इसलिए हिमालयी राज्यों, विशेषकर उत्तराखंड में मिट्टी संरक्षण के लिए धरातल पर काम करने की जरूरत है। कहा कि 16-17 जून 2013 की केदारनाथ आपदा से लेकर बाद के वर्षों में भूस्खलन व भूधंसाव की घटनाओं ने जमीन की ऊपरी परत को व्यापक क्षति पहुंचाई है, जिस कारण मिट्टी की निचली परतें भी कमजोर हो रही हैं। ऐसे में मिट्टी की परत को मजबूत बनाने के लिए ग्राम स्तर पर मिश्रित वानिकी को बढ़ावा देना होगा। बंजर, रेत-कंकर और अन्य प्रकार से खराब भूमि पर मिश्रित वानिकी को बढ़ावा देकर मिट्टी की परत को मजबूत करते हुए भूस्खलन जैसी घटनाओं को कम से कम किया जा सकता है। उन्होंने जैविक खाद के उपयोग से मृदा संरक्षण की बात कही।
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उन्होंने कृषि, उद्यानिकी में जैविक खाद का उपयोग कर मिट्टी को उपजाऊ बनाने के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड में रुद्रप्रयाग जैविक जिले के रूप में अपनी पहचान बना रहा है। ग्रामीण काश्तकार अपनी खेतीबाड़ी में जैविक खाद का प्रयोग कर रहे हैं, जिससे उत्पादन में वृद्धि हो रही है। गुवाहाटी से लौटकर देव राघवेंद्र बद्री ने बताया कि दो दिवसीय सेमीनार में मेघालय, असम, हिमाचल प्रदेश, कश्मीर, नागालैंड राज्य से विभिन्न क्षेत्रों में परामर्शदाता शामिल हुए थे। बताया कि इस सेमीनार का मुख्य उद्देश्य हिमालय राज्यों में मृदा संरक्षण को बढ़ावा देना है। ग्राम स्तर पर छोटे-छोटे सफल प्रयासों से प्रदेश स्तर पर वृहद खाका तैयार करना है। आगामी पांच दिसंबर को कार्यशाला की रिपोर्ट नई दिल्ली में नीति आयोग और भारत सरकार को सौंपी जाएगी।
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