बेनकाब हुए मंदिर समिति अध्यक्ष अजेन्द्र अजय
जिस पर लगाए मंदिर समिति अध्यक्ष ने आरोप, उसी को बना डाला सर्वे-सर्वा
अंधा बांटे रेवड़ी, फिर अपने को दे जैसी स्थिति बनी है मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय की।
देहरादून। केदारनाथ मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय की ईमानदारी की कलई दिन ब दिन खुलती जा रही है। 2013 की केदारनाथ अपादा के बाद पुनर्निर्माण कार्यों के हीरो रहे कर्नल अजय कोठियाल के कार्यो पर प्रश्न चिन्ह लगाने वाले अजेंद्र अजय की असलियत अब धीरे-धीरे सामने आने लगी है।
बता दें कि मंदिर समिति के जिस लेखाधिकारी सुनील तिवारी को अनुचित वेतनमान, नियम विरुद्ध पदोन्नति, अवैध एसीपी दिये जाने को लेकर शासन से जांच के लिए सामाजिक कार्यकर्ता बनकर अजेंद्र अजय ने पत्र लिखा था। आज उसी लेखाधिकारी सुनील तिवारी को मंदिर समिति अध्यक्ष बनने के बाद अजेन्द्र अजय ने रातों रात उप मुख्य कार्याधिकारी बना दिया। इससे पार्टी विशेष की शाख को भी बट्टा लग गया। आखिर अजेंद्र अजय के ह्दय परिवर्तन का कारण क्या है। कहने की जरूरत ही नहीं है, यह आंखो से अंधा आदमी भी देख सकता है और बहरा भी सुन सकता है कि अजेंद्र अजय की नीतियां कितनी दोगली हैं। इससे अजेंद्र अजय की असलियत सामने आ गयी है और ईमानदारी का नकाब भी हट गया है। धर्मस्व अनुभाग उत्तराखंड शासन के अनुसचिव दीपक कुमार का पत्र दिनांक 8 नवंबर 2019 संख्या 853/वीआई/2019-83(1) में सामाजिक कार्यकर्ता बनकर अजेंद्र अजय ने मंदिर समिति के लेखाधिकारी एवं लेखाकारों को अनुचित नियम विरुद्ध वेतनमान, एसीपी, नियम विरुद्ध पदोन्नति पर कार्रवाई की मांग की गयी है।
लेकिन वक्त की वानगी देखे या अजेंद्र अजय की ईमानदारी या फिर बेइंतिहा बेईमानी। जिस लेखाधिकारी के जांच तथा अनियमितता की शिकायत उन्होंने तीन साल पहले शासन से की। उसी लेखाधिकारी को मंदिर समिति अध्यक्ष बनते ही अजेंद्र अजय ने रातों-रात बिना मुख्य कार्याधिकारी को विश्वास में लिए बिना शासन को संदर्भित सूचित किये अपने हस्ताक्षर से 6 अगस्त 2022 आदेश संख्या 812 से उप मुख्य कार्याधिकारी (डिप्टी सीईओ) बना दिया। डिप्टी सीईओ भी नागनाथ निकले। उन्होंने भी आव देखा न ताव। डिप्टी सीईओ सुनील तिवारी ने मुख्य कार्याधिकारी को अंधेरे में रखकर 16 अवैध पदोन्नतियां कर डाली। इससे बड़ी अराजकता उत्तराखंड के इतिहास में नहीं मिलेगी।
इसी तरह मंदिर समिति में लड्डू वीर अधिशासी अभियंता की चैलाई लडू घोटाला को लेकर शासन स्तर पर जांच गतिमान है, जबकि मंदिर समिति के पूजा काउंटर पर हुई चोरी में दर्ज पुलिस एफआईआर पर लीपापोती का प्रयास चल रहा है। अब तक मंदिर समिति में हुए घपलों में मंदिर समिति में बिना सीईओ के हस्ताक्षर के डिप्टी सीईओ द्वारा 16 कर्मचारियों की अवैध पदोन्नति, बद्रीनाथ मंदिर परिसर पूजा काउंटर पर चोरी, मदिर समिति अध्यक्ष द्वारा स्वयं केदारनाथ मंदिर गर्भगृह का वीडियो वायरल करने का कार्य किया गया। केदारनाथ मंे मंदिर के गर्भगृह में फोटो खिंचवाकर वायरल करने का आरोप तीर्थ पुरोहित समाज लगा चुका है। इसके अलावा मंदिर समिति अध्यक्ष की कारस्तानी देखिए, जब उन्होंने एक विशेष कार्याधिकारी को चैकीदार साबित किया और अपने स्वयं सेवक भाई को रुद्रप्रयाग जिला मुख्यालय में मंदिर समिति विश्राम गृह का मैनेजर बनाया। भले अध्यक्ष के भाई का अवैध रूप से बढे़ वेतन के आदेश को अस्थायी कर्मचारियों के विरोध के बाद तत्कालीन मुख्य कार्याधिकारी ने निरस्त कर दिया। अब संस्कृत विद्यालयों के अध्यापकों की वेतन विसंगति का मामला भी सामने आया है। दूसरी ओर भूमिदान दाता भरत मंदिर ट्रस्ट ऋषिकेश ने आरोप लगाया है कि मंदिर समिति ने चारधाम यात्रा के शुभारंभ केंद्र ऋषिकेश चंद्र भागा स्थित दान की भूमि में स्थापित प्रचार कार्यालय को बंद कर दिया है, जबकि भरत मंदिर ट्रस्ट ने यह भूमि प्रचार कार्यालय के लिए दी थी। मकसद यही था कि चारधाम आने वाले तीर्थ यात्रियों को यात्रा मार्ग-दर्शन मिल सके। दानीदाता के संकल्प के अनुसार अन्य प्रयोजन के लिलए भूमि का उपयोग नहीं होना चाहिए तथा प्रचार कार्यालय बंद न हो। प्रचार-प्रसार कार्यालय को बंद किये जाने के बाद इस संबंध में मंदिर समिति को कानूनी नोटिस भरत मंदिर ट्रस्ट ने भेज दिया है। शीघ्र ही इस संबंध में जनहित याचिका भी दायर हो सकती है, जिससे मंदिर समिति में खलबली मच गयी है। मंदिर समिति के वर्तमान सदस्य दबी जुबान में कह रहे हैं कि श्री बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति की बोर्ड बैठक में ऋषिकेश कार्यालय पर चर्चा तो हुई पर कोई भी प्रस्ताव बैठक कार्रवाई में शामिल नहीं हुआ है।
यह अजूबा सिर्फ मंदिर समिति में ही संभव है कि केवल पांच वर्ष की स्थायी सेवा के बाद मंदिर समिति का विधि अधिकारी पेंशनधारी बन गया और फिर अजेंद्र अजय की कृपा से 70 हजार रूपये प्रतिमाह संविदा नौकरी में कार्यरत है। यह विधि अधिकारी किसी न्यायालय में मंदिर समिति की पैरवी नहीं करता, वहां अलग अधिवक्ता पैरवी करते हैं, जिनको मंदिर समिति कई दशकों से फीस भुगतान करती है। केदारसभा से लेकर चारधाम महापंचायत के पदाधिकारी भी मंदिर समिति अध्यक्ष के क्रियाकलापों से खासे आक्रोशित हैं। अजेंद्र अजय अपनी हर जगह उजागर हो रही सच्चाई को राजनीतिक रंग देकर अपना बचाव कर रहे हैं, जबकि प्रदेश सरकार एवं मुख्यमंत्री के पास अपने को पाक साफ बता रहे हैं।
गढ़वाल विश्वविद्यालय पर्यटन विभाग के सूत्र बताते हैं कि मंदिर समिति 2012 से 2014 तक गढ़वाल विश्वविद्यालय द्वारा मंदिर ममिति व्यवस्थापकों की ट्रेनिंग की पहल मंदिर समिति के पूर्व अध्यक्ष विधायक गणेश गोदियाल ने शुरू की थी। उनके कार्यकाल में मंदिर समिति प्रबंधकों को वृहद प्रशिक्षण शिविर आयोजित हुआ। लेकिन अब मंदिर समिति अध्यक्ष इस बार हुई गढ़वाल विश्वविद्यालय की व्यवस्थापकीय ट्रेनिंग को भी अपनी उपलब्धि बता रहे हैं, जो कि सामान्य विभागीय प्रक्रिया है। देहरादून स्थित केनाल रोड़ कार्यालय से मंदिर समिति को आईटी सेक्टर बनाने का ढोंग करने वाले अजेंद्र अजय मंदिर समिति की 2004 में बनी वेबसाइट तथा 2014 के आॅनलाइन पूजा साफ्टवेयर को अपनी उपलब्धि बता रहें तो मामूली फेसबुक ट्वीट को आईटी समझ रहे हैं। वास्तविकता यह है कि यात्रियों के मामूली रजिस्ट्रेशन का काम तक शासन ने मंदिर समिति को नहीं दिया। देवस्थानम बोर्ड के समय ई-पास तक बोर्ड जारी कर रहा था। आज यात्रा के सभी कार्य उत्तराखंड पर्यटन के पास हैं। बद्रीनाथ-केदारनाथ में पूजा व्यवस्था के अलावा यात्रा संचालन पुलिस प्रशासन के साथ ही यात्रा मजिस्ट्रेट नियुक्त हैं।
इस तरह मास्टर प्लान में भी मंदिर समिति का कोई रोल नहीं है। मंदिर समिति को अपनी परिसंपत्तियों को बचाने के लाले पड़ रहे हैं। देशभर में मंदिर समिति की भू-संपत्ति से लेकर दुकानों आदि पर पीढ़ी दर पीढी कब्जे हैं। वहीं मंदिर समिति की व्यवसायिक किराये की दुकाने को थर्ड पार्टी (सबलेट) को दिया गया है। हुई हैं, जिसमें मंदिर समिति को लाखों का चूना लग रहा है। केंद्र द्वारा करोड़ों-अरबो रूपये खर्चकर बदरीनाथ-केदारनाथ में यात्री सुविधायें और रोप वे आदि बन रहे हैं, लेकिन निकट भविष्य में मंदिर समिति को किसी भी व्यवस्था में भागीदारी मिलेगी, इसमें शक है। क्योकि बंदर को दी हल्दी की कहावत चरितार्थ हो जायेगी। इसलिए शासन सभी भू संपत्तियों को उत्तराखंड पर्यटन के नाम से ही रजिस्ट्री कर रहा है, ना कि बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के नाम रजिस्ट्री हो रही है। आज की तारीख यह बता रही है कि बद्रीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति का गठन मात्र राजनीतिक तुष्टिकरण है। इसीलिए पारदर्शिता तथा ईमानदारी के अभाव के साथ ही अकर्मण्यता के चलते मंदिर समिति विवादों का अड्डा बनी हुई है। ऊपर से संवैधानिक पद पर ऐसे शख्सों को बिठाया गया है, जो राजनीतिक अहम तथा भाई-भतीजावाद फैला रहे हैं। कहते हैं अंधा बांटे रेवड़ी, फिर अपने को दे। यह स्थिति मंदिर समिति अध्यक्ष अजेंद्र अजय की हो चुकी है। कर्मचारियों की प्रोन्नति, एसीपी, स्थानांतरण तक में लड़ाई सड़क पर हो रही है।
वहीं कांग्रेस प्रदेश प्रवक्ता सूरज नेगी ने कहा कि करोड़ों हिन्दुओं के आस्था के प्रतीक बद्री-केदार मंदिर समिति में इस तरह खुलेआम मनमाफिक कार्यो को किया जाना, उचित नहीं है। सरकार और शासन का मंदिर समिति पर कोई नियंत्रण नहीं है। प्रदेश के मुखिया भी इस मामले में चुप्पी साधे हुए हैं। उन्होंने कहा कि जिस तरीके से देवस्थानम् बोर्ड को खत्म करने के बाद पुनः मंदिर समिति को अस्तित्व में लाया गया। उसके बाद से सिर्फ और सिर्फ धार्मिक आस्था के साथ खिलवाड़ हुआ है। वर्षो से बद्री-केदार में सेवा कर रहे कर्मचारियों की भावनाओं के साथ खिलवाड़ हुआ है। भाई-भतीजावाद और फायदे के लिए पदोनतियां की गई, जबकि ट्रांसफर भी उस समय किये गये, जब प्रदेश में अंकिता भंडारी की हत्या को लेकर जनता सड़कों पर थी। इतना सबकुछ होने के बाद भी प्रदेश सरकार इन मामलों में आंखे बंद किये हुए है। ऐसे में लगता है कि अब बाबा केदारनाथ और भगवान बद्रीनाथ से ही इन्हें जवाब मिलेगा, जो सभी के आंखों में लगी पट्टी को खोलकर रख देगा।
चारधाम तीर्थ पुरोहित हकहकूकधारी महापंचायत ने श्री बदरीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति द्वारा 50 वर्षों से चल रहे प्रचार- जनसंपर्क कार्यालय को बंद किये जाने पर नाराजगी जाहिर की है। मंदिर समिति से शीघ्र कार्यालय को पूर्ववत खोलने की मांग की। महापंचायत ने समिति धर्मशालाओ को ठेके पर देने पर भी एतराज जताया।
चार धाम महापंचायत के संयोजक सुरेश सेमवाल ने कहा है कि धार्मिक संस्थाओं में पदाधिकारियों को अपने अहम के चलते निर्णय नहीं लेने चाहिए। सेमवाल ने कहा सदियों से चारधाम यात्रा की शुरुआत हरिद्वार एवं ऋषिकेश से होती रही है। हरिद्वार -ऋषिकेश से तीर्थयात्रियों को आगे श्री बदरीनाथ- केदारनाथ गंगोत्री यमुनोत्री यात्रा के मार्गदर्शन केन्द्र रहा है। ऐसे में प्रचार कार्यालय का बंद किये जाने का कोई औचित्य नहीं है।
चार धाम महापंचायत प्रवक्ता डा बृजेश सती ने भरत मंदिर ट्रस्ट द्वारा मंदिर समिति को क़ानूनी नोटिस देने का स्वागत करते हुए बदरी -केदार मंदिर समिति से प्रचार कार्यालय को पूर्ववत खोलने की मांग की है।
पाठक उक्त लेख पढ़कर स्वयं विचार कर सकते हैं कि सच्चाई यह है कि धार्मिक संस्थाओं में इस तरह से अंधेर गर्दी नहीं होनी चाहिए। प्रदेश सरकार को संज्ञान लेकर बद्ररीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के कार्यो की जांच करवानी चाहिए। अन्यथा अंधेर नगरी चौपट राजा वाली कहावत सिद्ध हो जाएगी।