अतिक्रमण के नाम पर उत्पीड़न किया तो दिया जाएगा मुंह तोड़ जवाब: उक्रांद
महिलाओं के साथ हुई बदसलूकी
मुकदमें दर्ज कर स्थानीय लोगों का किया जा रहा उत्पीड़न
जल, जंगल, जमीन पर पहला अधिकार मूल निवासियों का
रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय मीडिया प्रभारी मोहित डिमरी ने कहा कि तुंगनाथ घाटी में 13 सितंबर को हुई घटना इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गई है। एक बार फिर पहाड़ की नारी सब पर भारी पड़ी है। तुंगनाथ घाटी में पीढ़ी दर पीढ़ी रोजगार कर रहे मूल निवासियों को खदेड़ने आई प्रशासन और वन विभाग की टीम को उल्टा महिलाओं ने ही खदेड़ दिया। महिलाओं की हिम्मत देखिए, जैसे ही जेसीबी एक ढाबे तो तोड़ने के लिये आगे बढ़ती है तो कुछ स्थानीय महिलाएं जेसीबी की बकेट के ऊपर चढ़ जाती हैं। तस्वीरें इस बात की गवाही दे रही हैं कि किस तरह महिलाओं ने अपनी जान की बाजी लगाई और ढाबों पर एक भी आंच भी नहीं आने दी। वहीं अब स्थानीय लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कर उनका उत्पीड़न किया जा रहा है।
स्थानीय लोगों का कहना है कि इस दौरान महिलाओं के साथ अभद्रता की गई। उनके कान के कुंडल तक निकाल दिये गये। कई महिलाओं पर चोटें भी आई हैं और उनकी चूड़ियां तक टूट गई। इस सबके बावजूद गांव के लोगों के खिलाफ़ सरकारी काम में बाधा डालने और सरकारी कर्मचारियों के साथ बदसलूकी के आरोप में मुकदमे भी दर्ज कर दिये गये हैं। ग्रामीणों के खिलाफ़ की गई इस कारवाई की उत्तराखंड क्रांति दल भर्त्सना करता है। स्थानीय लोगों को प्रताड़ित करने और झूठे मुकदमे दर्ज करने को लेकर पूरे प्रदेश में उत्तराखंड क्रांति दल आंदोलन शुरू करेगा।
मोहित डिमरी ने कहा कि तुंगनाथ घाटी के लोग पीढ़ी दर पीढ़ी रोजगार कर रहे हैं। आदिगुरु शंकराचार्य के समय से स्थानीय लोगों के अपने हक-हकूक हैं। आज इन्हीं हक-हकूकधारियों को उजाड़कर बड़े-बड़े उद्योगपतियों को जमीन बेचने का षड्यंत्र कभी कामयाब नहीं होने दिया जाएगा। जब वन विभाग अस्तित्व में नहीं था, उससे पहले से यहां के लोगों ने जंगलों को संरक्षित किया है और आज वन विभाग तमाम तरह में कानूनों की आड़ में मूल निवासियों का उत्पीड़न कर रही है। इसे बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। सरकार आज तक तुंगनाथ घाटी में बिजली, पानी, स्वास्थ्य, संचार, शौचालय तक की सुविधाएं नहीं पाई है, लेकिन जिन हक-हकूकधारियों ने पीढ़ियों से पंचकेदारों में एक तुंगनाथ में तमाम सुविधाएं दी हैं, आज उन्हें बेदखल किया जा रहा है।
13 सितंबर को उत्तराखंड क्रांति दल का संगठन भी मौके पर मौजूद था। हमने स्थानीय हक-हकूकधारियों से कहा कि जंगल पर पहला अधिकार हमारा है। वन विभाग का काम सिर्फ मॉनिटरिंग करने का है। वन विभाग हमें अपने अधिकारों से वंचित नहीं कर सकता। अगर वन विभाग और प्रशासन जोर-जबर्दस्ती करता है तो हमें भी अपनी पूरी ताकत से मुकाबला करना है। हमारे सामने आगे कुंआ और पीछे खाई जैसी स्थिति है। हमें अब आरपार की लड़ाई लड़ने के लिए तैयार रहना है। उत्तराखंड आंदोलन जैसा एक और आंदोलन अपने मूल निवासियों के जल, जंगल, जमीन के अधिकार के लिये लड़ने का समय आ गया है।