समाजशास्त्र से पीजी करने वालों के साथ अन्याय कर रहा चिकित्सा शिक्षा विभाग
मेडिकल सोशल वर्कर की पोस्ट में योग्यता में समाजशास्त्र को हटाया
पूर्व में मेडिकल कॉलेज में समाजशास्त्र से पीजी करने वाले कई पक्की नौकरी पर लगे
आखिर मेडिकल सोशल वर्कर की पोस्ट के लिए समाजशास्त्र हटाने के पीछे किसका हाथ
समाजशास्त्र को वरियता नहीं तो विश्वविद्यालय व महाविद्यालय में बंद हो समाजशास्त्र की पढ़ाई
देहरादून। उत्तराखंड का चिकित्सा शिक्षा विभाग प्रदेश के समाजशास्त्र से पीजी करने वाले हजारों छात्र-छात्राओं के साथ अन्याय कर रहा है। प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में मेडिकल सोशल वर्कर की नियुक्ति में उत्तराखंड चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड ने मात्र एमएसडब्ल्यू से पीजी करने वाले छात्रों को वरियता दी है। ऐसे में समाजशास्त्र से पीजी करने वाले छात्रों को कोई वरियता नहीं दी गई है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मेडिकल सोशल वर्कर की पोस्ट के लिए योग्यता में समाजशास्त्र हटाने के पीछे किसका हाथ होगा। जबकि हल्द्वानी, श्रीनगर जैसे मेडिकल कॉलेजों में पहले समाजशास्त्र से पीजी करने वाले स्थाई पद पर तैनात भी किये गये है। जिससे उत्तराखंड चिकित्सा शिक्षा विभाग की इस कार्यप्रणाली से समाजशास्त्र से पीजी करने वाले अभ्यर्थी खासे नाराज है।

उत्तराखंड के मेडिकल कॉलेज में लम्बे समय बाद मेडिकल सोशल वर्करों की नियमित पोस्ट आयी, किंतु उक्त पोस्ट भरने में ही खेल हो गया, पिछले साल मेडिकल कॉलेज में 38 सोशल वर्करों की पोस्ट निकाली गई, जिसमें 31 ही भरे गये, किंतु बचे सात पदों पर 3 जून 2023 को दोबारा चिकित्सा सेवा चयन बोर्ड ने विज्ञप्ति जारी की है। पिछले साल भी समाजशास्त्र से पीजी कोर्स करने वालों को इन पदों को भरने के लिए वरियता नहीं दी गई, इस बार भी पूर्व की भांति चयन बोर्ड को करना ही था। पिछले साल भी उक्त पदों पर समाजशास्त्र वालों को वरियता ना दिये जाने पर चिकित्सा शिक्षा मंत्री से लेकर तमाम अलाधिकारियों को पत्र दिये गये, किंतु किसी के द्वारा उक्त गंभीर मसलें पर नहीं सोचा गया, जिससे लगता है कि उक्त भर्ती प्रक्रिया में कुछ ना कुछ खेल जरूर रहा होगा।

समाजशास्त्र से पीजी करने वाले दीपेन्द्र रावत, कंचन, अभय, अनिल, विनोद, सुनय ने कहा कि हमारे द्वारा नियमित कॉलेज जाकर समाजशास्त्र से रेगुलर पढ़ाई की, किंतु मेडिकल सोशल वर्कर की पोस्ट में सरकार ने कोई वरियता नहीं दी। जबकि प्राइवेट और इग्नू विवि से एमएसडब्ल्यू करने वालों को ही ज्यादा वरियता दी गई। कहा कि एनएचएम से भी आने वाले पदों में समाजशास्त्र और एमएसडब्ल्यू दोनों को वरियता दी जाती है, किंतु चिकित्सा शिक्षा ने ऐसा नया करानामा कर समाजशास्त्र से पीजी करने वालों को ही दरकिनार कर दिया। छात्रों ने सामाजिक संस्थाओं से उक्त मामले में कोर्ट में रिट दायर कर हजारों छात्रों को भला किये जाने की मांग उठाई है। साथ ही पूर्व में हुई मेडिकल सोशल वर्कर की नियुक्ति की जांच की मांग उठाई है। वहीं समाजशास्त्र के विशेषज्ञों ने भी चिकित्सा शिक्षा विभाग के इस निर्णय को छात्र विरोधी बताया।

युवाओं ने मुख्यमंत्री से संज्ञान लेने की गुहार लगाई-
युवाओं ने कहा कि जब चिकित्सा शिक्षा विभाग ने समाजशास्त्र को वरियता नहीं देनी है तो प्रदेश के महाविद्यालयों में समाजशास्त्र विषय को बंद करा देना चाहिए। युवाओं ने चिकित्सा शिक्षा में मेडिकल सोशल वर्कर के पदों पर हुए खेल का मुख्यमंत्री से जल्द संज्ञान लेने की मांग उठाई है। कहा कि पूर्व में नियुक्ति पाये कई लोग फर्जी एक साल का अस्पताल में कार्य करने का अनुभव दिखाकर नौकरी पा चुके है। कहा कि अस्पताल में एक साल काम का अनुभव मांगा था, जिनके अनुभव प्रमाण पत्र भी गहनता से जांच पड़ताल होनी चाहिए। वहीं पता चला कि महाविद्यालयों में समाजशास्त्र में शिक्षकों की तैनाती के लिए समाजशास्त्र व एमएसडब्ल्यू दोनों विषय मांगे जाते है, किंतु चिकित्सा शिक्षा विभाग अपने लोगों की फिट करने के लिए अलग ही नियम बना रहा है।
