पढ़ने-लिखने की संस्कृति को लेकर वेबीनार आयोजित
जीवन जीने के तरीके को पुस्तक नहीं सीखा सकती: सिंह
रुद्रप्रयाग। अजीम प्रेमजी फाउण्डेशन के सहयोग से पढ़ना पढ़कर ही आयेगा विषय पर आयोजित वेबीनार में बतौर मुख्य वक्ता शिक्षकों को संबोधित करते हुए अजीम प्रेमजी फाउण्डेशन उत्तराखंड के मास्टर ट्रेनर खजान सिंह ने कहा कि मानव जन्म से लेकर शिशु अवस्था तक सीखने के विभिन्न चरणों व उपक्रम से होकर गुजरता है।
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उन्होंने बताया कि हमें बोलने, सुनने और यहां तक कि सोचने के लिए भी सीखना होता है। इस सीखने की शुरूआत भाषा सीखने से होती है और भाषा सीखने के बाद हम सीखने के लिए साहित्य का सहारा लेते हैं। कहा कि हर परिस्थिति में पढ़ने के अलग-अलग उद्देश्य होते हैं। कभी परीक्षा पास करने के लिए पढ़ा जाता है, कभी वरीयता सूची में स्थान पाने के लिए कभी बोलने के लिए भाषण तैयार करने के लिए पढ़ा जाता है। वेबीनार के उद्देश्यों को बताते हुए उन्होंने कहा कि एक शिक्षक के रूप में हमारे पढ़ने-लिखने के उद्देश्य अलग, व्यापक और गहरे हैं। हम अपने पेशेवर दक्षता को पाने के लिए जो कुछ पढ़ते हैं, उसका उद्देश्य हमारे कौशल व व्यवहार में परिमार्जन करना होता है। जिया कैसे जाय जीने का सलीका कैसा हो यह किसी पुस्तक से नहीं सीखा जा सकता। उन्होंने यात्रा साहित्य व संस्मरणों का जिक्र करते हुए कहा कि यात्रा वृतांत व संस्मरण पढ़ते वक्त, पाठक लेखक के साथ एकाकार होते हुए, साहित्य की यात्रा करता है। पाठकों के मनोविज्ञान का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इस यात्रा में लेखक के साथ पाठक भी सह यात्री बन जाता है, जिससे पाठक के अंदर, खुशियों का विस्तार होता है। इससे हमारी मनस्थिति व विचारों का विस्तार होता है। कार्यक्रम में जिला शिक्षा अधिकारी प्रारम्भिक यशवीर सिंह रावत सहित 83 शिक्षक उपस्थित थे। वेबीनार का संचालन अजीम प्रेमजी फाउण्डेशन रुद्रप्रयाग के सदस्य करन सिंह बिष्ट ने किया।
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